Search This Blog
Thursday 27 December 2012
Wednesday 26 December 2012
Monday 24 December 2012
रसखान
रसखान
मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं गोकुल गाँव के ग्वालन।
जो पसु हौं तो कहा बसु मेरो चरौं नित नन्द की धेनु मंझारन।
पाहन हौं तो वही गिरि को जो धरयौ कर छत्र पुरन्दर धारन।
जो खग हौं बसेरो करौं मिल कालिन्दी-कूल-कदम्ब की डारन।।
धूरि भरै अति सोभित स्याम जु
तैसी बनी सिर सुन्दर चोटी।
खेलत खात फिरै अँगना पग पैंजनी बाजती पीरी कछौटी।
वा छवि को रसखान विलोकत बारत काम कला निज कोठी।
काग के भाग बडे सजनी हरि हाथ सौं ले गयो रोटी।।
खेलत खात फिरै अँगना पग पैंजनी बाजती पीरी कछौटी।
वा छवि को रसखान विलोकत बारत काम कला निज कोठी।
काग के भाग बडे सजनी हरि हाथ सौं ले गयो रोटी।।
Sunday 23 December 2012
kavita kosh
http://kavitakosh.org/kk/%27%E0%A4%85%E0%A4%A8%E0%A4%BE%27_%E0%A4%95%E0%A4%BC%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A5%80#.UNf2seT0Dwg
Subscribe to:
Posts (Atom)