एक अंतर्राष्ट्रीय समस्या आतंकवाद
आतंकवाद का सामान्य अर्थ भय व आतंक
का माहौल उत्पन्न करना है । आतंक का तात्पर्य उस दशा से है जिसमें कुछ व्यक्ति या व्यक्तियों
के समूह अपनी उचित या अनुचित मांगों को मनमाने के लिये घोर हिंसात्मक साधनों का प्रयोग
करने लगते हैं । आतंकवाद का अर्थ राजनीति या अन्य कारणों से प्रेरित हिंसा,
तोडफोड, आगजनी, विध्वंशक कार्यवाहियों,
हत्याओं अथवा अन्य
रूप से की गई अस्थिरता से लिया जाता है । अब यह निर्विवाद रूप से स्वीकारा जाने लगा
है कि आतंकवाद एक आपराधिक कार्य है जो कि राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय कानून क तहत
निन्दनीय व निषिद्ध है ।
आतंकवाद कोई नई परिघटना नहीं है । इसके अतीत पर विचार
करने पर पाते हैं कि इसका इतिहास कई सौ साल पुराना है । अपने इस लम्बे इतिहास में इसके
चरित्र व स्वभाव में अनेक बदलाव आयें है। आरम्भ में आतंकवाद का प्रयोग राजसत्ता द्वारा
अपने नागरिकों पर अपना दबदबा कायम रखने, उनको सत्ता के प्रति आज्ञाकारी बनाये रखने के उद्देश्य
से हिंसा व आतंक का सहारा लेने के रूप में किया गया था । उस समय राजतंत्र ही संगठित
हिंसा और आतंक के मुख्य स्रोत थे । बाद में राजतंत्रों के पराभाव, राष्ट्र-राज्यों के उदय,
निरंकुश शासकों के
विरुद्ध लोकतांत्रिक शक्तियों के संघर्ष तथा औपनिवेशक गुलामी के खिलाफ राष्ट्रीय मुक्ति
संग्रामों का युग आया । जहां कहीं भी सामन्तों और राजसत्ताआंे ने इसको रोकने की कोशिश
की तो इसके प्रतिरोध में जबाबी हिंसा और आतंकवादी कार्यवाहियां शुरू हुईं । इस पृष्ठभूमि
में संगठित तथा योजनाबद्ध आतंकवादी आन्दोलनों की शुरूआत हुई । प्रथम विश्वयुद्ध के
पश्चात आतंकवाद की प्रकृति में बदलाव आया । इस प्रकार अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में अनेक
ऐसे परिवर्तन हुऐ जिससे आतंकवाद को नया बल मिला । तीसरी दुनिया के अनेक देशों में चल
रहे अलगाववादी-आतंकवादी आन्दोलनों ने आतंकवाद का सहारा लिया । कुछ संगठन राज्य की हिंसा
और आतंक के खिलाफ हथियार उठाने को मजबूर हो गये ।
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद आरंभ हुऐ शीतयुद्ध ने आतंकवाद
को और हवा दी । जिसके तहत आमने-सामने की लडाई की बजाय प्राक्सीबार को जन्म दिया । यह
अपरोक्ष युद्ध ही आतंकवाद के प्रसार का प्रमुख कारण बना । आज आतंकवादी पहले से कहीं
ज्यादा आधुनिक संचार उपकरणों और हथियारों की सहज उपलब्धता ने उनके नेटवर्क को विश्वव्यापी
और अत्यधिक विध्वंसक बना दिया है । स्वचालित क्लासिकाव व एके -47 या एके -46 रायफलों, राकेट लांचरों, स्ट्रिंगर मिसायलों व ग्रेनेड एवं
आरडीएक्स उनको विश्वके हथियार बाजार में प्रचुरता से उपलब्ध हैं । आशंका तो यह भी है
कि परमाणु, रासायनिक व जैविक हथियार भी उनकी पहुँच से बाहर नहीं हैं । इन सबने आज आतंकवाद
को अत्यधिक खतरनाक व भयावह बना दिया है ।
आतंकवाद का सहारा आम तौर पर धार्मिक, जातीय या भाषायी समुदायों
के द्वारा अपनी महत्वाकंाक्षाओं को प्राप्त करने के लिये भी लिया जाता है । वे समाज,
देश अथवा विश्व में
आतंक उत्पन्न कर अपनी मांगों के बारे में व्यापक जनमत तैयार करना चाहते हैं तथा अपनी
ओर लोगों का ध्यान खींचना चाहतें हैं । इसके साथ हिंसा के माध्यम से सरकारों पर प्रभाव
डालकर अपनी मांगों को पूरा करवाने का प्रयास करते हैं ।
वैसे आतंकवाद की शुरूआत साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद व भ्रष्ट प्रशासन
को उखाड़ फैकने के उद्देश्य से हुई थी किन्तु धीरे-धीरे इसका स्वरूप भयानक होता गया
है । आज जेहादी लडाइयों, क्षेत्रीय विवादों, भाषायी व धार्मिक उन्मादों, जातीय गुटों ने आतंकवाद को अत्यधिक
विनाशकारी बना दिया है । आतंकवाद को परिभाषित करने का प्रयास अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर
कई बार किया गया लेकिन अनेक मतभेद उभरकर सामने आये । आज आतंकवाद के संबंध में अनेक
व्याख्यायें हैं । एक देश के लोग जिसे आतंकवाद की संज्ञा देेते हैं । दूसरे देश के
लोग उसी कार्यवाही को आजादी की लडाई, दमन के विरुद्ध संघर्ष और अस्तित्व रक्षा के लिये कार्यवाही
मानते हैं । हिंसात्मक आन्दोलन में लिप्त एक व्यक्ति को आतंकवादी की संज्ञा दी जाती
है लेकिन अपने उद्देश्य में सफल होने पर वही
व्यक्ति देश भक्त बन जाता है । यूएनओ में भी आतंकवाद को लेकर विभिन्न मतभेद उभरकर सामने
आये हैं । तीसरी दुनियां के अनेक देशों की मांग थी कि दमन से त्रस्त अल्पसंख्यक,
धार्मिक व जातीय समुदायों
द्वारा अपनी स्वाधीनता के लिये किये जिन देशों के विरुद्ध यह संघर्ष हो रहा था उन्होंने
उक्त कार्यवाही को आतंकवाद की संज्ञा दी । इस प्रकार आतंकवाद के संदर्भ मंे विभिन्न
अवधारणाऐं होने के कारण इसकी सर्वमान्य परिभाषा प्रस्तुत करना कठिन हो गया ।
आज संसार के मुख्य आतंकवादों समूहों मंे उत्तरी आयरलैण्ड
की आयरिश रिपब्लिकन पार्टी, इटली की रैड ब्रिगेड, श्रीलंका का लिट्टे, फिलिस्तानी मुक्ति संगठन,
इसरायल का मोशाद,
भारत मंे जेकेएलएफ,
खालिस्तानी कमांडो
फोर्स , बब्बर
खालसा गु्रप, उल्का, जैश-ए‘-मुहम्मद, पाकिस्तान के हिजबुल मुजाहिद्दीन, हरकत-उल-अंसार, लश्कर-ए-तौयबा, जमात-उल-दावा प्रमुख हैं
। अपहरण, बंधक
बनाना, बम विस्फोट,
घातक हथियारों द्वारा
आक्रमण, हवाई
जहाज तथा समुद्री जहाजों का अपहरण व विध्वंश, सामूहिक निर्दोष लोगों का हत्याकाण्ड
व तोडफोड से सरकारों को अस्थिर करना आतंकवादियों के प्रमुख कार्य हैं । निरंतर बढते
विमान अपहरण की घटनाआंे व यात्रियों की असुरक्षा
से एक गंभीर समस्या पैदा कर दी थी जिससे संयुक्त राष्ट्र संघ ;न्छव्द्ध ने अनेक अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ पारित कर घोषित
किया है कि विमान अपहरण व यात्रियों को बंधक बनाना अंतर्राष्ट्रीय समाज के विरुद्ध
एक गंभीर अपराध है । संयुक्त राष्ट्र ने सभी राष्ट्रों से अनुरोध किया है कि वे अपने
अधिकार क्षेत्र में ऐसी आतंकी घटनाआंे को रोकने का हर संभव प्रयास करें, अपराधियों पर मुकदमा चलाने
व दण्डित करने में कतई परहेज न करंे एवं आवश्यक हो तो ऐसे अपराधियों के प्रत्यार्पण
में एक-दूसरे की मदद करें जिससे कोई आतंकवादी दण्ड से बच न सकें ।
संयुक्त राष्ट्र की महासभा ने भी आतंकवाद को बडी गंभीरता
से लिया है, एवं सभी प्रकार के आतंकवाद की निन्दा करते हुऐ विश्वव्यापी सरकारों से दिसम्बर
1989 को अपील
की है कि वे आतंकवाद के विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीय संधियों पर हस्ताक्षर करें व इसके खात्में
के लिये कठोर कदम उठायें । किसी दूसरे देश के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों को संगठित
न करंे, न प्रोत्साहन
देते हुऐ सहायता करें, साथ ही उनमें शामिल न हों । आतंकवादियों को पकडने, उन पर मुकदमा चलाने तथा उन्हें
प्रत्यावर्तित करने में एक-दूसरे की सहायत करें तथा अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद के कारणांे
को समाप्त करने की दिशा में प्रयत्न करंे । नवम्बर 1990 मंे हुऐ सार्क देशों के शिखर सम्मेलन
में भी एक प्रस्ताव परित कर आतंकवाद को समाप्त करने, आतंकवादियों पर मुकदमा चलाने व अपराधियों
को प्रत्यार्पित करने पर बल दिया गया ।
आज आतंकवाद का अन्तर्राष्ट्रीयकरण हो गया है,
जो एक चिन्ताजनक पहलू
है । अपने स्वार्थांे की पूर्ति व शत्रु देश को हानि पहुंचाने के लिये पाकिस्तान सरीखे
कुछ देश न केवल आतंकवादियों को शरण, प्रशिक्षण व अन्य प्रकार की सहायता देते हैं बल्कि इन
प्रशिक्षित आतंकियों को दूसरे देशों मंे घुसपैठ भी कराते हैं । जहां ये हिंसा,
तोड-फोड व आगजनी के
द्वारा मासूम लोगों की जान लेते हैं । इस प्रकार आतंकवाद ने अंतर्राष्ट्रीय संबंधों
को तो प्रभावित किया ही है, साथ में राज्यों की एकता व सुरक्षा को अकल्पनीय खतरा पैदा हो
गया है । आज पाक समर्थित आतंकवादी भारत मंे आतंक फैलाकर देश अस्थिर कर रहें हैं । गुजरात
के अहमदाबाद, राजस्थान के जयपुर, आन्ध्र के हैदराबाद, दिल्ली तथा मुम्बई जैसे शहरों में
इन दरिदों ने जो खून की होली खेलकर दहशत पैदा की है, वह केवल निंदनीय ही नही, घृणित भी है । वैसे भारत
को अंतर्राष्ट्रीय कानून के क्वबजतपदम व ि भ्वज च्नेनपज अंतर्गत शत्रु की सीमा में
घुसकर उनको मार गिराने व उनके प्रशिक्षण शिविरों को नष्ट करने का अधिकार है । भारत
सरकार ने पाकिस्तान के आतंकवाद में लिप्त होने के सारे प्रमाण विश्व के अनेक देशों
के समक्ष रखे हैं जिससे पाकिस्तान पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव बना हैं किन्तु अभी भी पाकिस्तान
दिखावे की कार्यवाही आतंकी संगठनों के खिलाफ कर रहा है । वह उन्हें एक तरह से बचाने
मंे ही जुटा है । आज पाकिस्तान आतंकवाद तथा अलगाववाद को बढ़ावा देकर भारत की अखण्डता
व प्रभुसत्ता से खेल रहा है । प्रत्येक देश की सरकार का यह पहला कर्तव्य है कि ऐसी
गतिविधियों को कुचलना प्रत्येक सरकार का कर्तव्य है किन्तु साथ-साथ यह भी कर्तव्य है
कि आतंकवाद को पनपाने में सहायक अन्याय, घोर गरीबी, पीड़ाआंे, निराशाओं, भेदभावों को जड से खत्म करे जिससे आतंकवाद पैदा ही नही
हो । क्योंकि आतंकवाद मानवता के विरुद्ध सबसे बडा शत्रु है । इसके खात्में के लिये
हमें गैरबराबरी खत्म कर बराबरी से युक्त संसार रचने का यत्न करना होगा ।
- डॉ. बहादुर सिंह परमार
एम.आई.जी.-7, न्यू हाउसिंग बोर्ड कालोनी,
छतरपुर (म.प्र.)
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